'वाहन कहे गर्व से'
#रचनाकार फणीन्द्र कुमार मिश्र#
माँ का वाहन कहे गर्व से,
तुम भी मनबढ बन जाओ।
दही पोत दोनों हाथों में,
भंडारी तुम कहलाओं ।
काम कराने के नाम पर ,
पैसे की डिमाण्ड करो ।
मिले जहाँ से पैसा न तुमको
उसका जीना हराम करो।
बड़े सादगी से तुम अपने,
काम को सोशल वर्क कहो ।
जनता के मंसूबे को तुम,
नरक की तरह गर्त करो।
हड़प जमीन गरीबों के तुम ,
उनका बंटाधार करो।
मां का वाहन कहे गर्व से,
सबका तुम उद्धार करो।
दही पोत दोनों हाथों में
भंडारी का काम करो।