जीवन का जख्म :-


#रचनाकार: प्रेम सागर चौबे

जीवन ने जीवन भर हमको,
जी भर के जो भी सौंपा है।
 जीवन भर हमने जी भर के,
जी करके उसको सींचा है।
 जब-जब जीवन ने जीवन में,
जिस जिस को जितना जख्म दिया,
 जीवन मे फिर से जीवन ने
उसको उतना ही जतन किया।
मत सोच मनुज तू जो भी है,
  जिस लिए जहाँ में आया है,
जीवन के जख्मों के जड़ से
जकड़ी तेरी ये काया है ।।
जख्मों पर जख्मों का मरहम
जीवन भर जीव लगाया है, 
जीवन के अंत समय में भी,  
जीवनने जख्म थम्हाया है । 
पर जीवन जख्मों ने ही जमकर ,
जीवन जज्बात जगाया है।

Popular posts from this blog

प्रिय अनुज की याद में

##पहचान तो दे दिया, किंतु सम्मान देना बाकी है##

आज का समय