आज का समय


#रचनाकार :अनिल पांडेय
हिंदी अध्यापक
सेंट जोसेफ स्कूल सिसवा बाजार
राह में चलना संभल के मित्रों,
 बड़ा गजब का मंजर है।
चेहरे से भोले लगते हैं,
जेब में उनके खंजर है।
घर बड़े बड़े दिल छोटे है,
चेहरे पर चढ़े मुखौटे है,
 जो अजगर मोटे मोटे हैं,।
पहचान न कोई कर पाए,
सब बात यहां पर नकली है,
सौगात यहां पर नकली है,
जज्बात यहां पर नकली है।
दिनभर भागा दौड़ी में,
वस अपने को ही ठगना है,
हर छोटी बड़ी जरूरत में,
वस लाइन में ही लगना है।
इसीलिए कहता हूं मित्रों!
जो है आज उसी में जी  ले,
फिर सोचेंगे कल की बातें,
कल को किसने देखा है,
किसने देखी है कल की रातें।
चलते इस महा सफर में,
झड़ जाती सबकी औकाते।
नहीं रहा वह भी दुनिया में,
जिसका था बलवान मुकद्दर,
हार गया वह भी दुनिया से,
जो बनता था बड़ा सिकंदर।
    

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