जहाँ ना कोई नर होता ना नारी


स्वीटी मिश्रा द्वितीय वर्ष  बी•ए प्रोग्राम
न्यू दिल्ली
●सोचो कितना अच्छा होता जहाँ ना कोई नर होता ना नारी , जहां हम होते एक ही धरा के वासी ।।  
जहाँ हम एक गगन के नीचे, एक धरा पर है ,एक समान बनाये जाते।
 जहाँ हमारे स्वपनो पर एक साथ पर लगाए जाते 
सोचो न तब कितना अच्छा होता, जब का कोई नर होता वा नारी , जब हम होते एक ही धरा के वासी।।

 ●जहाँ ना किसी को स्त्री समझके कमजोर बनाया जाता, ना पुरुष समझके जिम्मेदारियाँ बढ़ाया जाता । जहाँ हमें एक समान कठिनाईयों का सामना करना सिखाया जाता 
सोचों न कितना अच्छा होता, जहाँ का कोई बर होता का बारी जहाँ हम होते एक हो घरा के वासी।।

● ये जहान कितना अच्छा होता, जहां डिजिटल जवाने के डिजिटल सोच भी होता। जहां हम एक समान, एक साथ, एक समय पे होते ।
जहां पर समान पहुँच के भाँति, सोच भी समान होता
सोचो न कितना अच्छा होता, जहाँ ना कोई नर होता न नारी जहाँ हम होते एक ही धरा के वासी।।

●जहाँ ना किसी को स्त्री समझके घर बिठाया जाता, का पुरुष जानके संसार घुमाया जाता, जहाँ ना स्त्री देखकर अधिकार छीना जाता, ना पुरुष देखकर सौंपा जाता, यहां सब साथ में काम पे जाते और वेतन की समान पाते। 
जहाँ सब साथ में भोजन पकाते, और साथ ही सपने सजाते।
 जरा सोचो न कितना अच्छा होता, जहाँ ना कोई नर होता ना नारी, जहाँ हम होते एक ही धरा के वासी।।

●जहाँ सूरज भी अपना होता और चाँद की अपना, 
जहाँ पर्वत भी अपना होता और नदी भी अपना ।
जहाँ चिड़ियाँ की चहचहाहट भी अपना होता, और बाघ की गुर्राहट भी अपना, 
जहाँ हम सबके होते और सब हमारे।
जरा सोचो न कितना अच्छा होता, जहाँ ना कोई नर होता न नारी, जहाँ हम होते एक ही धरा के वासी।।

- स्वीटी मिश्रा 
द्वितीय वर्ष 
बी•ए प्रोग्राम

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